चंडीगढ़ (बलजिंदर कूमार/भगवान दास)- फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह के निधन ने पूरे हिंदुस्तान के एथलीटों में शोक व्याप्त कर दिया। मिल्खा सिंह से फ्लाइंग सिख बनने का सफर कई एथलीटों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। मिल्खा एक जिंदादिल इंसान थे।
मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख का नाम पाकिस्तान के दूसरे राष्ट्रपति अयूब खान ने दिया था। पाकिस्तान में आयोजित जिस रेस के बाद उन्हें यह नाम मिला उसमें वे हिस्सा नहीं लेना चाहते थे। हालांकि, बाद में वो इसमें हिस्सा लिए और इसे जीते भी। असल में वो बंटवारे की घटना को भूल नहीं पाए थे। उनका जन्म 20 नवम्बर 1929 को अविभाजित भारत के पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) में एक सिख राठौर परिवार में हुआ था। मिल्खा सिंह के 15 भाई-बहन थे। बंटवारे के दौरान हिंसा में उन्होंने 14 में से आठ भाई बहनों और माता-पिता को खो दिया। मिल्खा सिंह जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर पाकिस्तान से दिल्ली आ गए। दिल्ली आने के बाद मिल्खा सिंह अपनी शादी-शुदा बहन के घर चले गए। दिल्ली में रहने के दौरान उनके भाई मलखान ने मिल्खा सिंह को भारतीय सेना में जाने के लिए कहा। लगातार 4 बार कोशिश करने के बाद मिल्खा सिंह को भारतीय सेना में भर्ती कर लिया गया। एक क्रॉस-कंट्री रेस ने उनके प्रभावशाली करियर की नींव रखी। इस दौड़ में 400 से अधिक सैनिक शामिल थे और इसमें उन्हें छठा स्थान हासिल हुआ। इसके बाद उन्हें ट्रेनिंग के लिए चुना गया। उन्होंने तीन ओलंपिक 1956 मेलबर्न, 1960 रोम और 1964 टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने हिस्सा लिया। मिल्खा सिंह के करियर का मुख्य आकर्षण 1964 एशियन गेम्स रहा। इस दौरान उन्होंने 400 मीटर रेस और 4×400 मीटर रिले रेस में गोल्ड जीता था। 1964 टोक्यो ओलंपिक में उनका प्रदर्शन यादगार नहीं रहा। इस दौरान उन्होंने केवल एक ही इवेंट 4×400 मीटर रिले रेस में हिस्सा लिया था।